Thursday April 24, 2025
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अस्सी घाट (दक्षिण) से शुरू होकर आदि-केशव घाट (सुदूर उत्तर) तक एक सुंदर इंद्रधनुष की तरह गंगा के साथ वाराणसी शहर में लगभग 6 किलोमीटर की दूरी में फैले 84 से अधिक घाट (लगभग 104) हैं। पवित्र शहर काशी के साथ पौराणिक संबंध के कारण गंगातट पर स्थित कम से कम पांच सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख घाट हैं जैसे अस्सी घाट, दशाश्वमेघ घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट, हरिशचंद्र घाट, आदि-केशव घाट आदि। कई घाट हिंदू शासकों द्वारा बनाए गए थे जैसे मालवा क्षेत्र की अहिल्याबाई होल्कर, ग्वालियर के पेशवा, आमेर के मानसिंह, जयपुर के राजा जयसिंह आदि। बनारस की कुछ प्रसिद्ध हस्तियों ने भी अपने नाम पर घाटों का नाम रखा। अधिकांश घाट मराठों के समय बनाए गए। मराठा, होलकर, भोंसले, सिंधिया और पेशवा हिंदूधर्म के महान संरक्षक भी रहे हैं। काशीतट, अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के मंडपों, महलों, मंदिरों और उंची छतों वाले मकानों और पत्थर की सीढ़ियों की एक अंतहीन श्रृंखला से सुसज्जित जलधारा के साथ मिलन के गीत गाते हुए दिखते हैं।  नदी के स्तर में मौसमी परिवर्तनों के साथ घाटों की छवि में भी नाटकीय परिवर्तन दृष्टिगोचर होते रहते हैं। प्रत्येक घाट, बड़े या छोटे, किसी न किसी शिवलिंगम को अपनी गोद में धारण किए हुए हैं। हर घाट काशी के धार्मिक, ऐतिहासिक  और सामाजिक परिवेश में अपना विशेष स्थान रखता है। कुछ घाट समय के थपेड़ों से उखड़ जरूर गए हैं। पर पिछले कुछ वर्षों में, मोदी जी के आने के बाद, घाटों पर बहुत काम भी हुआ है।

प्रातःकाल स्नान करने वालों के साथ पंडे, पुजारी, ध्यान और योग का अभ्यास करने वाले योगियों को हर दिन यहां घाटों पर देखा जा सकता है। हिंदू, गंगा और उसके पवित्र जल को अमृत-तुल्य मानते हैं, जो जीवितों को पवित्रता, सुख-समृद्धि और मृतकों को मोक्ष प्रदान करता है। घाट अच्छी तरह से बनाए गए हैं।  घाट साफ-सुथरे , दर्शनीय और सुरम्य हैं। एक छोर से दूसरे छोर तक नाव की सवारी द्वारा सुंदरता की इस सम्पूर्ण श्रृंखला का आनंद ले सकते हैं। वाराणसी में सुबह और शाम नाव की सवारी और गंगा आरती दुनिया भर में आगंतुकों के आकर्षण के रूप में प्रसिद्ध है। सीढ़ियों की लंबी शृंखला एक विशेष प्रकार के तटबंध हैं जो वास्तव में नदी की धारा को घाटों से जोड़ने का काम करती हैं जिनसे होते हुए लोग पवित्र धारा तक पहुँच कर नदी में डुबकी लगा सकते हैं। इन घाटों में स्नान और दाह संस्कार के अलावा भी बहुत कुछ है। वाराणसी के चौरासी घाटों में से प्रत्येक कुछ न कुछ विशेष महत्व रखता है। वाराणसी का गंगातट चित्रकारों और फोटोग्राफरों का बहुत ही  पसंदीदा स्थल है…

काशी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं। ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर सूर्य की पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से आरम्भ होकर दक्षिण में असी घाट तक 84 से अधिक घाट हैं। ये घाट लगभग 6 मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं।

इन 84 घाटों में पांच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है। ये हैं असी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट। असी घाट सबसे दक्षिण में स्थित है जबकि आदिकेशव घाट सबसे उत्तर में स्थित हैं। हर घाट की अपनी अलग-अलग कहानी है। कहते हैं कि  महानिर्वाणी घाट में महात्‍मा बुद्ध ने स्‍नान किया था। कुछ घाट जैसे मणिकर्णिका, दशाश्वमेध आदि किसी ं किसी पौराणिक कथा से जुड़े हुए हैं, जबकि कुछ घाट निजी स्वामित्व के भी हैं पूर्व काशी नरेश का शिवाला घाट और काली घाट निजी संपदा हैं। वाराणसी के कई घाट मराठा साम्राज्य के अधीनस्थ काल में बनवाये गए थे। वाराणसी के संरक्षकों में काशीनरेश, मराठा, शिंदे (सिंधिया), होल्कर, भोंसले और पेशवा परिवार रहे हैं। वाराणसी में अधिकतर घाट स्नान-घाट हैं, कुछ घाट अन्त्येष्टि घाट हैं।

मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी शांत नहीं होती, क्योंकि बनारस के बाहर भी मरने वालों की अन्त्येष्टी, पुण्य प्राप्ति के लिये यहीं की जाती है। कहा जाता है एक बार माता पार्वती का कर्ण फूल यहां के कुंड में गिर गया था, जिसे ढूंढने का काम भगवान शिव ने किया। इस घटना के बाद, इस स्थल को मणिकर्णिकाघाट  नाम मिला। इस घाट को महाश्मशान भी कहा जाता है। जीवन के सबसे अंतिम पड़ाव के दौरान, मोक्ष प्राप्ति की लालसा लिए यहां व्यक्ति आने की कामना करते हैं। कई हिन्दू मानते हैं कि वाराणसी में मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस घाट पर आग लगातार 2500 वर्ष से बिना बुझे जल रही है।

 दशाश्वमेध घाट को काशी का सबसे प्रसिद्ध घाट कहना गलत नहीं होगा । यह सबसे पुराना घाट माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने 10 अश्वमेध यज्ञ किए थे। भव्य गंगा आरती इसी जगह की जाती है। नजदीक ही विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर, बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, यहां पर है और यहीं पर है नवनिर्मित काशी विश्वनाथ कॉरीडोर जहां करोड़ों श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। शिवरात्रि एवं गंगा दशहरा आदि पर्वों पर यहाँ पैर रखने की जगह नही मिलती।

हरिश्चन्द्र घाट महाराजा हरिश्चन्द्र के नाम पर है। महाराजा हरिश्चन्द्र भगवान श्रीराम के पूर्वज थे और अयोध्या के सम्राट थे एवं सत्य के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले। जिसके कारण उन्हे बड़ी-बड़ी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा यहां तक कि उन्हे अपने आप को भी काशी के डोमराजा को बेंचना पड़ा और इसी घाट पर डोम के सेवक के रूप में चिताएं जलाने का काम करना पड़ा। यह घाट भी दाह संस्कार आदि करने के लिए है। माना जाता है की जिनका अंतिम संस्कार यहाँ किया जाता है, वे मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करते है ।

अस्सी घाट अस्सी नदी और गंगा नदी के मिलाप पर है। यह घाट दूर दक्षिण कोने पर है और घाटों की शृंखला यहीं से शुरू होती है। यहाँ एक शिवलिंग है जो एक पीपल वृक्ष के नीचे है। गंगा आरती और समय समय पर होने वाले मनोहारी सांस्कृतिक कार्यक्रम देश विदेश में भी सराहे जाते हैं। इसी से कुछ दूर पर विश्वप्रसिद्ध काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ,नया विश्वनाथ मंदिर, प्राचीन जागृत दुर्गा मंदिर एवं विश्वप्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर और तुलसीमानस मंदिर आदि स्थित हैं। अस्सी घाट से लगा हुआ ही वह स्थान है जहां महानकवि, भक्त और समाज सुधारक गोस्वामी तुलसीदास जी ने विश्व प्रसिद्ध श्रीराम चारित मानस की रचना की थी।

पचगंगा घाट पौराणिक मान्यता के अनुसार इस घाट पर गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण और धूतपापा नदी का मिलन होता है। इसी वजह से इस घाट को ‘पंचगंगा’ कहा गया है। इसी पावन घाट के सानिध्य में आकर संत कबीर ने गुरू रामानंद से दीक्षा प्राप्त की थी ।

आदिकेशव (राजघाट) – इस घाट को आदि केशव घाट के रूप में जाना जाता है क्यूंकि यहां आदि केशव विष्णु मंदिर है। यह माना जाता है की श्री विष्णु ने पहले बनारस में यहां अपना स्थान बनाया।

काशी के बढ़ते धार्मिक महत्व ने इस शहर को भारतीय पर्यटन के क्षेत्र में एक अगल पहचान दी है। काशी का विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर इसी पतित पवानी गंगा के तट पर स्थित है। इसलिए इस नगरी तक पहुंचना काफी सुविधाजनक हो गया है। यहां सैलानी हवाई मार्ग से लेकर रेल/सड़क/जल  मार्ग के द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा देश-विदेश से आये  सैलानियों की सेवा में तत्पर है। रेल मार्ग के लिए आप वाराणसी या मुगलसराय या मँड़ुआडीह रेलवे स्टेशन जा सकते हैं। इन स्टेशनों के सहारे आप भारत के किसी भी कोने तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां से कई राज्यों के लिए डाइरेक्ट ट्रेन और बससेवा  उपलब्ध हैं। आजकल तो वाराणसी से असम तक कि 3200 किलोमीटर की यात्रा का आनंद आप गंगा नदी में लक्जरी क्रूज द्वारा ले सकते हैं।

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