Saturday December 21, 2024
Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

हिमालय के किसी सरोवर में कभी एक दानव केकड़ा निवास करता था। हाथी उसका सबसे प्रिय आहार था। जब भी हाथी के झुण्ड उस सरोवर में पानी पीने अथवा जल-क्रीड़ा के लिए आते तो उनमें से एक को वह अपना आहार अवश्य बनाता। चूँकि हाथी समूह के लिए उस वन में जल का कोई अन्य स्रोत नहीं था। अत: गजराज ने अपनी गर्भिणी हथिनी को दूर किसी प्रदेश में भेज दिया कि कहीं गलती से हथिनी उस दानव-केकड़े का ग्रास न बन जाय।

कुछ ही महीनों के बाद हथिनी ने एक सुंदर और बलिष्ठ हाथी को जन्म दिया। जब वह बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता का ठिकाना पूछा और यह भी जानना चाहा कि आखिर उसे इतने दिनों तक पिता का वियोग क्यों मिला था। जब उसने सारी बातें जान लीं तो वह माता की आज्ञा लेकर अपने पिता से मिलने हिमालय के उसी वन में आ पहुँचा। फिर उसने पिता को प्रणाम कर अपना परिचय देते हुए उस दानव केकड़े को मारने की इच्छा व्यक्त की और इस महान् कार्य के लिए पिता की आज्ञा और आशीर्वचन मांगे। पिता ने पहले तो उसकी याचना ठुकरा दी किन्तु बार-बार अनुरोध से उसने अपने पुत्र को पराक्रम दिखाने का अवसर दे ही दिया।

पुत्र ने अपनी सेना तैयार की और अपने शत्रु की सारी गतिविधियों का पता लगाया। तब उसे यह विदित हुआ कि वह केकड़ा हाथियों को तभी पकड़ता था जब वे सरोवर से लौटने लगते थे; और लौटने वालों में भी वह उसी हाथी को पकड़ता जो सबसे अंत में बाहर आते थे।

सूचनाओं के अनुकूल उसने अपनी योजना बनायी और अपने साथियों के साथ सरोवर में पानी पीने के लिए प्रवेश किया। उन साथियों में उसकी प्रेयसी भी थी।

जब सारे हाथी सरोवर से बाहर निकलने लगे तो वह जानबूझकर सबसे पीछे रह गया। तभी केकड़े ने उचित अवसर पर उसके पिछले पैर को इस प्रकार पकड़ा जैसे एक लुहार लोहे के एक पिण्ड को अपने चिमटे से पकड़ता है। हाथी ने जब अपना पैर खींचना चाहा तो वह टस से मस भी न हो सका। घबरा कर हाथी ने चिंघाड़ना शुरु किया, जिसे सुनकर हाथियों में भगदड़ मच गई। वे उसकी मदद को न आकर इधर-उधर भाग खड़े हुए। हाथी ने अपनी प्रेयसी को पुकारा और उससे सहायता मांगी। प्रेयसी हाथी को सच्चे दिल से प्यार करती थी। तत्काल अपने प्रेमी को छुड़ाने के लिए उसके पास आई और केकड़े से कहा-

“तू है एक बहादुर केकड़ा
नहीं है तेरे जैसा कोई दूसरा
हो वह गंगा या नर्मदा
नहीं है शक्तिशाली तेरे जैसा कोई बंदा।” मादा हाथी की प्यार भरी बातों से प्रसन्न हो केकड़े ने अपनी पकड़ ढीली कर दी। तभी हाथी ने प्रसन्नता भरी चिंघाड़ लगाई जिसे सुनकर सारे हाथी इकट्ठे होकर उस केकड़े को ढकेलते हुए तट पर ले आये और पैरों से कुचल-कुचल कर उसकी चटनी बना दी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *