एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR): एक बढ़ती हुई वैश्विक चुनौती
छुआ-छूत का जहर बोने वाले तो मुगल और अंग्रेज थे जिन्होंने हिन्दुओं को आपस में लड़ाये रखने के लिये यह किया ताकि यह महान हिन्दू कौम कभी एक न हो पाये और उन्हे आसानी से पराजित और धर्मान्तरित किया जा सके और इसका लांछन ब्राह्मणों पर लगा दिया गया जो कि खुद उनके षडयंत्र के शिकार थे। हिन्दू धर्म ने कभी छूत-अछूत का भेद नहीं किया। सारे वर्गीकरण काम के आधार पर थे जैसे आजकल हैं यानि सांसद आइएएस, आइपीएस, आइएफएस, क्लास-1 , 2 , 3 या 4 , नेता, अभिनेता, व्यापारी, किसान, सैनिक आदि। छुआ-छूत का ड्रामा तो बीच में निहित स्वार्थियों द्वारा फैलाया गया मकड़जाल है। जैसे कि आज भी आइएएस वर्ग आइपीएस आदि को कमतर दृष्टि से देखता है। क्लास-1 वाले बाकियों को नीचे समझते हैं। नेता लोग जनता को इस्तेमाल करने की वस्तु समझते हैं आदि-आदि ।
अगर हिन्दू धर्म में छुआ-छूत का भेद किया जाता तो वाल्मीकि महर्षि नहीं कहे जाते, श्री राम शबरी के जूठे बेर नहीं खाते। यह धर्म के बजाय सामाजिक कुरीति है जिसे शिक्षा और समान अवसर की भावना से हल किया जा सकता है न कि आरक्षण या एससी / एसटी ऐक्ट जैसे समाज को बांटने वाले कृत्रिम उपायों से। यकीन मानिए अगर इस तरह के भेदभाव वाले कानून न बनाए जाते और समाज को मुक्त छोड़ दिया जाता तो यह छुआ-छूत और ऊंच-नीच का विचार अपने आप ही सालों पहले ही लुप्त हो चुका होता।
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