Wednesday January 22, 2025
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काशी विशेष:

काशी को शिव की नगरी कहा जाता है और काशी के पार्श्व से बहती गंगा एक दिव्य दृश्य उत्पन्न करती है। शिव की जटाओं से निकली गंगा शिव की नगरी के बगल से बहने के कारण और भी पवित्र हो जाती है। महान संत और कवि तुलसी दास जी ने अपने सबसे बड़े महाकाव्य ‘राम चरित मानस’ को लिखने के लिए काशी-वाराणसी में गंगा के तट को चुना, जो हिंदुओं के लिए मुख्य धार्मिक पुस्तक है तथा अत्यंत दुष्कर मुगलकाल के दौरान और उसके बाद भी हिंदू धर्म, हिंदुत्व की रक्षा, प्रचार और प्रसार में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

काशी की महत्ता के चलते देश भर के तमाम हिंदू राजा हमेशा से गंगा के तट पर आकर अपने महल निर्माण हेतु प्रयत्नशील रहे हैं और यही कारण है कि काशी के घाट पूरी दुनिया में एक अलौकिक और अप्रतिम छवि प्रस्तुत करते हैं । “काशी के घाट” पाठकों को इसी सुंदरता से  अवगत कराने का एक प्रयास है।

गंगा की पौराणिक कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार राजा सगर को कठोर तपस्या के बाद साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति हुई। एक दिन राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। कहा जाता है कि इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर ने अपने पुत्रों को हर जगह घोड़े की खोज में भेजा। अंत में, उन्होंने कपिल मुनि के आश्रम में घोड़े को बंधा हुआ पाया। घोड़े को ऋषि के पास बंधा देखकर सगर के पुत्रों ने सोचा कि घोड़ा ऋषि द्वारा ले जाया गया है। सगर के पुत्रों ने इसी कारणवश ऋषि का घोर अपमान कर दिया। हजारों वर्षों से तपस्या में लीन ऋषि ने क्रोध से जैसे ही अपनी आंखें खोलीं राजा सगर के सभी साठ हजार पुत्र भस्म हो गए। सगर के पुत्रों की मृत्यु हो गई लेकिन उनकी आत्माओं को मुक्ति नहीं मिल सकी क्योंकि यथाविधि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका था। राजा ने अपने बेटों का अंतिम संस्कार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का फैसला किया ताकि पितरों की अस्थियों को गंगा जल में प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माओं को स्वर्ग में स्थान मिल सके। सगर के पुत्र अंशुमन ने भी आत्माओं को मुक्ति दिलाने का असफल प्रयत्न किया। तत्पश्चात अंशुमन के बेटे दिलीप ने भी प्रयास किया पर व्यर्थ रहा। इसके बाद राजा दिलीप की दूसरी पत्नी से पुत्र राजा भगीरथ ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए तत्पर हो गए। उस पर गंगा ने बताया कि जब वे इतनी ऊंचाई से पृथ्वी पर आयेंगी तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी। तब ब्रह्मा जी के कहने पर भगीरथ ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। शिव ने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोककर एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे गंगा सागर तक आगे बढ़ी जहां सगरपुत्रों की राख वर्षों से पड़ी थी। गंगा के आगमन के साथ ही उन सब को मोक्ष प्राप्त हो गया। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पवित्र हो गई और पृथ्वीवासियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गई। गंगा को हिंदू मान्यता के अनुसार देवी माना जाता है और उसे सुरसरि या देव नदी कहा जाता है । यही कारण है कि प्रतिदिन गंगापूजन एवं गंगाआरती का प्रावधान है और गंगा को दूषित करना वर्जित है।

गंगा जल विशेष:

सदियों से हम अपने बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं कि गंगाजल ही एक ऐसा जल है जिसे बिना ट्रीटमेंट के कितने भी समय तक रखा जा सकता है और वह खराब नहीं होगा और इसकी शुद्धता बनी रहेगी। जबकि साधारण पानी को अगर किसी बोतल या बर्तन में लंबे समय तक रखा जाए तो वह खराब हो जाता है और बदबू आने लगती है। लोग पूजा स्थलों पर घरों में गंगा जल रखते हैं जो वर्षों तक बिल्कुल स्वच्छ और शुद्ध रहता है। इस गुण के पीछे गंगा जल में पाया जाने वाला बैक्टीरियोफेज वायरस है, जो पानी में मौजूद खराब बैक्टीरिया को खत्म कर  देता है। जब गंगा का पानी हिमालय से आता है, तो उसकी लंबी यात्रा के दौरान कई खनिजों और जड़ी-बूटियों का भी उस पर प्रभाव पड़ता है, इससे गंगाजल में औषधीय गुणों का समावेश हो जाता है। कहते हैं कि गंगा जल रोग पैदा करने वाले ई.कोलाई बैक्टीरिया को मार सकता है। गंगा जल में वायुमंडल से ऑक्सीजन अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता होती है। गंगा जल में प्रचुर मात्रा में सल्फर भी होता है, इसलिए यह लंबे समय तक खराब नहीं होता है। गंगा जल में मौजूद मिनरल्स शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। वैज्ञानिक परीक्षण बताते हैं कि गंगाजल से स्नान करने और गंगाजल पीने से कई रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। हिंदू धर्म में गंगा जल का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि गंगा जल के स्पर्श से मनुष्य अपने पापों से भी आसानी से छुटकारा पा सकता है। घर में रखा मां गंगा का पवित्र जल चारों ओर सकारात्मकता का संचार फैला सकता है।

गंगा स्नान विशेष:

वेद, पुराण, रामायण, महाभारत और कई धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है। गंगा को देवनदी भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम जैसे पूजा, अभिषेक, शुद्धिकरण गंगाजल के बिना अधूरे  माने  जाते हैं । धार्मिक मान्यता के अनुसार गंगा नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है. इसीलिए गंगा नदी को पापमोचनी और मोक्षदायिनी कहा गया है। गंगा जल के स्पर्श मात्र से ही भगीरथ के पूर्वजों की मुक्ति हो गई थी। मान्यता है कि मृत्यु के समय यदि किसी व्यक्ति के मुंह में गंगाजल डाला जाए तो उसके पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि समय-समय पर गंगा स्नान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। गंगा किनारे रहने वाले बहुत से लोग प्रतिदिन गंगा के घाटों पर पहुंचकर गंगा में डुबकी लगाते हैं, पूजा, यज्ञ और योग आदि करते हैं। विशेष अवसरों जैसे एकादशी, गंगा दशहरा, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण आदि पर गंगा स्नान का बहुत विशेष महत्व है।

हर बारह साल बाद प्रयाग में गंगा के तट पर एक बहुत बड़ा और अद्भुत आयोजन होता है, जिसे महाकुंभ कहा जाता जहां लाखों लोग इकट्ठा होते हैं और डुबकी लगाते हैं। यह एक महीने तक चलता है। एक ही स्थान पर एक साथ इतने सारे भक्तों का इकट्ठा होना आश्चर्यजनक और अनोखा है इसीलिए इसे  गिनीज बुक रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। इसी तरह के कार्यक्रम गंगा के अन्य तटों जैसे हरिद्वार और गंगा सागर पर भी आयोजित किए जाते हैं।

वर्ष २०२५ में महाकुंभ मेला १३ जनवरी २०२५ पौष पूर्णिमा से आरंभ होगा और २६ फ़रवरी २०२५ को समाप्त होगा। 

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