एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR): एक बढ़ती हुई वैश्विक चुनौती
हिन्दूधर्म बहुत ही वैज्ञानिक है और उमसे निहितार्थ समझने के लिये ज्ञान जरूरी है। मस्तिष्क में सुविचार लाने के लिए विश्वास, श्रद्धा और पाजिटिव थिंकिंग जरूरी है। इसी लिए आपने देखा होगा कम्युनिस्टी और तालिबानी सोच वाले हमेशा हिंसा में लिप्त होते हैं और कभी भी आत्मिक सुख और शांति के बारे में सोच भी नहीं सकते। वहीं एक सच्चा भक्त और अच्छा इंसान हर हाल में प्रसन्न रहता है। उसके जीवन में हिंसा का कोई स्थान नहीं। हिन्दू धर्म ही ऐसा महान है। अगर यह बात लोगों के विवेक पर छोड़ दिया जाए और उनपर बेजा दबाव न डाला जाये तो ज्यादातर लोग हिन्दू जीवन पद्धति अपनाना चाहेंगे, क्योंकि हिन्दू जीवन पद्धति सबसे सरल, खुली हुई, वैज्ञानिक और प्राकृतिक है। कहते हैं कि इस्लाम और ईसाइयत का प्रचार तलवार के जोर पर करना पड़ा जबकि हिन्दुत्व का प्रचार ज्ञान और प्रेम द्वारा हुआ पर इसका यह मतलब नहीं कि हम ढोंगियों के भी पीछे भागने लगें। हिन्दूधर्म बहुत ही मजबूत है और यह बात भी सही है कि शस्त्रों की जरूरत सिर्फ कमजोरों को ही होती है पर हिन्दू स्वयं आपस में ही एक दूसरे की जड़े काट-काट कर पूरे विश्व से सिमट कर अब भारत से भी अपने अंत की ओर अग्रसरित हैं और हमारा हिन्दू समाज, डरपोक, आपस में लड़ता हुआ, ऊंच-नीच, एससी-एसटी ओबीसी, आरक्षण और संवैधानिक रूप से बांटा हुआ एक समाज है जहां एक छुटभइया सड़क छाप नेता या एक कान्स्टेबल किसी हिन्दू पर गुंडई झाड़ कर चला जाता है, हिन्दू देवी-देवताओं और सन्यासियों का हर ऐरा-गैरा मजाक उड़ा सकता है, हिन्दू साधु-सन्यासियों को पुलिस के सामने कोई भी आतताई पीट-पीट कर मौत की नींद सुला सकता है पर बेचारा, डरा हुआ हिन्दू समाज, आधे विश्व पर राज करने वाला हिन्दू समाज आज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है । परंतु यह भी सच है कि “जिस दिन हिन्दू भी दया-धर्म की जगह गला काट सीख जायेगा और कट्टर और उन्मादी बन जाएगा….उस दिन लोग लवजिहाद, बलात धर्म परिवर्तन, दंगा-फसाद आदि सब करना छोड़ देंगे”….बात आदिम कालीन जरूर लगती है पर दुर्भाग्य से बात तो सही है क्योंकि जैसे को तैसा एक सर्वव्यापी तथ्य है…
हमें बार-बार, सदा ही झूठ बतलाया जाता रहा है कि हिन्दू शब्द मुगलों ने हमें दिया, जो “सिंधु”, जो कि एक फारसी शब्द है, के अपभ्रंश “हिन्दू” होने से बना है। पर सच्चाई यह है कि ‘हिन्दू’ शब्द, प्राचीन संस्कृत काल से प्रचलित रहा है और इसकी उत्पत्ति वैदिक काल से हुई है। हमारे “वेदों” और “पुराणों” में हिन्दू शब्द का उल्लेख बारंबार हुआ है। यथा- “ऋग्वेद” के “ब्रहस्पति अग्यम” में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया हैं :-
“हिमालयं समारभ्य
यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं
हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।”
अर्थात : हिमालय से इंदु सरोवर तक, देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं!
केवल “वेद” ही नहीं, बल्कि “शैव” ग्रन्थ में हिन्दू शब्द का उल्लेख
किया गया हैं:
“हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।”
अर्थात :- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं!
इससे मिलता जुलता लगभग यही श्लोक “कल्पद्रुम” में भी दोहराया गया है:
“हीनं दुष्यति इति हिन्दूः।”
अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं।
“पारिजात हरण” में हिन्दू को कुछ इस प्रकार बताया गया है :
”हिनस्ति तपसा पापां
दैहिकां दुष्टं ।
हेतिभिः श्त्रुवर्गं च
स हिन्दुर्भिधियते।”
अर्थात :- जो अपने तप से शत्रुओं का, दुष्टों का, और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है !
“माधव दिग्विजय” में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लिखित किया गया है :-
“ओंकारमन्त्रमूलाढ्य
पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य:।
गौभक्तो भारत:
गरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः।
अर्थात : वो जो “ओंकार” को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, गौ पालक हो तथा बुराइयों को दूर रखे, वो हिन्दू है!
इन सारी व्याख्याओं में हिन्दुओं के गुणों की ही चर्चा की गयी है परन्तु यह कहीं नहीं कहा गया कि हिन्दू कोई धर्म विशेष है। हिमालय से लेकर हिन्दमहासागर तक फैलै हुये महान राष्ट्र को हिन्दुस्थान कहा गया है और उस में रहने वाले निवासियों, चाहे वे किसी जाति-धर्म के हों, को ही हिन्दू कहा जाता रहा है….और यही है हिन्दू शब्द का विराट स्वरूप… जिसने भी भारत, भारतीयता और वन्देमातरम अपना लिया, वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वधर्मसम्भाव को मानते हुये भारत तेरे टुकड़े और गजवा ए हिन्द से तौबा कर ली और मन, वचन और कर्म से भारतमय हो गया वही भारतीय है और वही हिन्दू है फिर वह चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो या किसी और धर्म या देश का…..
हम हिन्दू ऐसे ही हैं। बेवकूफी ? और दया की मूर्ति। किसी ने प्यार से (झूठा ही सही) दो बोल क्या बोल दिया उसी के हो गये। हमने कोई मक्का और काबा नहीं बनाये जहाँ दूसरे धर्म वाले जा ही न सके। हमने मजार और मस्जिदों को भी उतना ही मान दिया है। हमने हजारों मस्जिदें या गिरजाघर आदि नहीं तोड़ी हैं। हमारी यही अच्छाइयां हमारी कमजोरी हैं। शिवाजी महाराज को एक युद्ध में औरंगजेब के सूबेदार की बीबियाँ मिली तो उन्हें भी बाइज्ज़त उनके सरपरस्तों तक पहुंचा दिया। हां हम ऐसे ही हैं। हम जल्लाद नहीं हम कोमल हृदय हिन्दू हैं। हम सर्वधर्म समभाव पर यकीन करते। धरती को मां मानते हैं। सहअस्तित्व और सर्वधर्मसम्भाव में विश्वास करते हैं। हां हम वही काफिर हिन्दू हैं जिसने कभी नहीं सोचा कि हमारे सिवाय और दूसरे धर्म वाला इस दुनिया में रह ही नहीं सकता है। हिन्दुओं की अच्छाई, सहनशीलता और क्षमाशीलता ही उनके पराभव का कारण बनता आया है…
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