एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR): एक बढ़ती हुई वैश्विक चुनौती
वैसे तो तीनों लोकों से न्यारी काशी का अस्तित्व मानवता के प्रादुर्भाव के साथ ही जुड़ा है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार काशी का निर्माण स्वयं भगवान शंकर ने किया है ऐसी मान्यता है। महादेव शिवशंकर सदा काशी में विराजमान होते हैं और वे ही उसके रक्षक है। काशी-प्रवास हर हिन्दू का स्वप्न होता है। पतित-पावनी गंगा में एक डुबकी मात्र से मनुष्य अपने जन्म-जन्मांतरों के बंधन से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त हो जाता है।
समय समय पर बाहरी आक्रान्ताओ द्वारा विनाश के सतत प्रयासों के बावजूद भी काशी नागरी आज भी हिंदुओं के अपने प्राचीन गौरव के साथ सर उठाकर खड़ी है। हजारों मंदिरों, सैकड़ों घाटों, अनंत गलियों और बनारसी लोगों का मस्त और बिंधास अंदाज आज भी बनारस में देखने को मिल जाएगा। आज की काशी समग्र भारत का एक प्रतिबिंब है। सभी प्रदेशों, सभी जातियों और धर्मानुयायियों का एक गुलदस्ता। यहाँ किसी की धर्म, जाती, या किस प्रदेश से हैं यह पहचान नहीं है। यहाँ सब की एक ही पहचान है, सब बनारसी हैं, सब संतुष्ट हैं, सब निश्चिंत हैं। सबका एक ही मंत्र है,
चना-चबैना गंग-जल जो देवे करतार। काशी कभी न छोड़िए बाबा विश्वनाथ दरबार ॥
किसी बनारसी की सबसे बड़ी सजा है कि उसे बनारस से बाहर जाने को कह दिया जाय। ऐसी काशी को देखना है तो इसके घाटों पर आईये जहाँ आज भी प्राचीन काशी जीवन्त है।
काशी, वाराणसी, या बनारस को भारत के सबसे पुराने सुंदर और प्राचीन धार्मिक शहरों में से एक कहा जाता है। काशी, हिंदुओं की सबसे पवित्र नदी गंगा के नाम से जानी जाने वाली नदी के तट पर स्थित है। इसे भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है। दो पुरानी नदियों, वरुणा और अस्सी के बीच स्थित होने के कारण इसको वाराणसी भी कहा जाता है। वाराणसी शहर भारत की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 800 किमी दूर है, और विभिन्न तरफ से वायु, रेल और अनेक एक्सप्रेस राजमार्गों से भलीभाँति जुड़ा हुआ है।
लाखों तीर्थयात्री मां गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने, पूजा करने और पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में देवों के देव महादेव, भगवान शिव, के दर्शन एवं पूजन के लिए काशी आते हैं। पवित्र नगरी काशी को मंदिरों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। शहर भर की गलियां हजारों मंदिरों से आबाद हैं। वाराणसी में कुछ प्रसिद्ध मंदिर यथा काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, काल भैरव मंदिर, संकटमोचन मंदिर, दुर्गा मंदिर और तुलसी मानस मंदिर आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहाँ से 10 किमी दूर सारनाथ नामक स्थान पर दिया था। वहां पर भी कई विश्व प्रसिद्ध हिन्दू, बुद्ध और जैन मंदिर स्थित हैं ।
विश्व प्रसिद्ध बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यहाँ स्थित है। वाराणसी तीन विश्वविद्यालयों, योग, कला, संगीत और संस्कृति सहित सैकड़ों संस्कृत और अन्य संस्थानों का स्थान है जहां दुनिया भर से छात्र अध्ययन और हिंदू धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते हैं। यह शहर अपनी संस्कृति, योग और कई प्रसिद्ध संस्कृत विद्वानों, शास्त्रीयगायन, वाद्यसंगीत कलाकारों और नृत्य गुरुओं के लिए भी जाना जाता है। हिंदुओं की सबसे पवित्र पुस्तक ‘राम चरितमानस’ यहीं अस्सी घाट पर गंगा नदी के तट पर लिखी गई।
गंगातट के अधिकांश सुंदर भवनों और स्मारकों का निर्माण विभिन्न राजाओं द्वारा पूरे भारत के इतिहास के विभिन्न कालखंडों में किया गया। हिंदुओं द्वारा यह माना जाता है कि जो लोग यहां मरते हैं वे मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करेंगे।
बनारस के घाट (नदी तट) दुनिया के सबसे खूबसूरत घाटों में से एक हैं। वाराणसी के घाट एक धनुष जैसी आकृति बनाते हैं और सुंदर प्राचीन भवन और मंदिरों से आबाद हैं। घंटी, आरती, शंखध्वनि और पूजा के स्वर , विशेष रूप से सुबह और शाम को आनंद और शाश्वत शांति प्रदान करते है। गंगा-आरती और घाटों पर विभिन्न धार्मिक समारोह पूरे वर्ष काशी को सदा जीवंत रखते हैं।
अस्सी घाट से आरंभ होकर राजघाट तक 84 से अधिक घाटों और करीब 6 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करते हुए माँ गंगा काशी के घाटों को स्पर्श करते और अपने भक्तों को कृतकृत्य करते हुए गुजरती है। घाटों की सुंदरता अप्रतिम है। गंगा शुष्क मौसम में भी घाटों की सीढ़ियों को नहीं छोड़ती। कहा जाता है कि गंगा-जल सदा स्वच्छ और पवित्र रहता है और वर्षों तक दुर्गंधित नहीं होता। दूर-दूर से लोग पूजन और विभिन्न शुभकार्यों हेतु यह पवित्र जल अपने घर ले जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा-जल की कुछ बूंदें अगर मरने वाले व्यक्ति के मुंह में डाली जाती हैं तो दर्द रहित मृत्यु, अनन्त शांति और मोक्ष प्राप्ति होती है।
अगर कोई काशी की भावना को जानना और समझना चाहता है, तो उसे बनारस के घाटों पर जाना चाहिए, जहां पुरानी संस्कृति, वातावरण और बनारसी मस्ती अभी भी जीवित है। बनारस के घाटों पर प्रवेश सभी के लिए पूरी तरह से नि:शुल्क है। शाश्वत शांति, आनंद और ईश्वरीय सानिध्य का अनुभव करने के लिए यहाँ आपकी धर्म, जाति, पंथ, या राष्ट्रीयता पूछे बिना किसी और हां किसी का भी प्रेमभाव से स्वागत किया जाता है।
नाव से घाटों की सुंदरता को देखना विशेष रूप से प्रातःकाल और सूर्यास्त के समय एक अविस्मरणीय अनुभव प्रस्तुत करता है विशेषतः जब घाट धार्मिक गतिविधियों, सुबह की सैर करने वालों, योग और साधना करने वाले लोगों के साथ मुखर और जीवंत होते हैं।
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