एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR): एक बढ़ती हुई वैश्विक चुनौती
बात पूर्वजन्म या द्वापर, त्रेता या सतयुग की नहीं है अपितु इसी कलियुग की है जब भारतीयों का साम्राज्य आधी दुनिया पर हुआ करता था। फिर भारत में महात्मा बुद्ध का अवतार हुआ। उनके अहिंसा के उपदेश का प्रभाव यह हुआ कि सम्राटों और जनता ने “अहिंसा परमोधर्मः” को जीवन का मन्त्र मानकर अस्त्र-शस्त्र त्याग दिये। और उधर, सुदूर पश्चिम में दो नये धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ, ‘ईसाइयत और इस्लाम’। जहाँ हिन्दू और बौद्ध सम्राट और राजा अपने शस्त्र त्यागने लगे वहां ईसाई और मुस्लिम अनुयायी अपनी तलवारों के जोर पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने लगे और साथ ही अपने धर्म को भी, फिर चाहे सामने वाले को मौत के घाट ही क्यों न उतारना पड़े।
यहां भारत में हम ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’, ‘धम्मम् शरणम् गच्छामि’ और ‘संघम् शरणम् गच्छामि’ का जाप करते रहे। सर्वधर्मसम्भाव और वसुधैवकुटुम्बकम् का राग अलापते हुए आपस में ही लड़ते मरते रहे। परिणाम यह हुआ कि ईसाई और मुस्लिमों ने तलवार के जोर पर पूरी दुनिया पर कब्जा कर लिया। तथाकथित बौद्ध-हिन्दू भारतवर्ष में भी सिमटकर रह गये बाकी या तो धर्मान्तरित कर लिये गये या मार डाले गये।
हिन्दूधर्म का उपहास, हिन्दुओं के आराध्य देवी-देवताओं का अपमान, साधु-सन्तो की निर्मम हत्यायें, धर्म के बारे में बेरोकटोक दुष्प्रचार, षड्यन्त्र, धोखा और लालच देकर हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन, हिन्दुओं का कत्लेआम और अपने घरों, जिलों और प्रदेशों से पलायन के लिये मजबूर करना आदि इस लिये होता है कि हिन्दू धर्म एक बेहद लचीला धर्म है, जिसमें आप ईश्वर पर सवाल खड़ा कर सकते हो, ईश्वर पर बदजुबानी आदि कर सकते हो, ईश्वर का मजाक उड़ा सकते हो, हिन्दुओं को मारकाट कर उन्हें भगा सकते हो। वर्ना यही काम इस्लाम विरोध में करके तो देखो, कटा हुआ सर कहीं पड़ा न मिले तो कहना। चार्ली हैब्दो में एक कार्टून क्या छप गया, वहां कत्लेआम हो गया। पाकिस्तान, ईरान, ईराक साउदिया टाइप मुस्लिम देशों में ईशनिन्दा के कानून के अन्तर्गत हजारों गैरमुस्लिमों को जरा सी बात के लिये ग़ोली से उड़ा दिया जाता है। ईसाई धर्म की नाफ़रमानी करने वालों को गिरजाघरों से बेदखल कर दिया जाता है या आर्थिक दण्ड भरना पड़ता है। सिक्खों में जूते साफ करने आदि जैसा दण्ड भुगतना पड़ता है। पर हिंदुओं और उनके धर्म के साथ कोई कुछ भी कर सकता है। कहावत है, “कमजोर की जोरू सब की लुगाई ”।
देश और हिन्दुओं का दुर्भाग्य तो उनका अपना ओढ़ा हुआ है। एक तो आपस में लड़ते रहेंगे, दूसरे अपने धर्म को ही गालियां देंगे और तीसरा, जितने देश भक्त उतने ही जयचंद और स्वार्थ में आकंठ डूबे हुये ये जीव अपने ऊपर हुये अत्याचारों के विरोध में कोई प्रतिकार तक नहीं करते है अपितु उसके विरोध में आवाज उठाने को भी तथाकथित आधुनिक हिन्दू पिछड़ापन समझते हैं और बेइज्जती महसूस करते हैं। फिर कश्मीर ही क्यों एकदिन पूरे भारत भूमि से ही अगर इन्हें भगा दिया जाये तो आश्चर्य की बात नहीं। कभी विपत्ति भी आयेगी तो अपने आपसी मनमुटाव और वैमनस्य तथा अपनी ईगो को ही सामने रखेंगे भले ही सामने वाला दुश्मन उनको एक-एक कर निपटा ही क्यों न दे। यही मो० घोरी, अलाउद्दीन खिलजी, मुगलों और ईस्ट इंडिया कम्पनी आदि के समय में हुआ। इतना ही नहीं अगर कोई उन्हें संगठित भी करने की कोशिश करता है तो ये पचास सवाल करेंगे और चाहेंगे कि उनकी लड़ाई भी कोई दूसरा लड़ दे। यही अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर में हुआ है और बचे-खुचे भारतवर्ष में आज भी हो रहा है। अगर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो 30-50 सालों में भारत भी मुस्लिम बहुल इस्लामिक देश बन जाये तो ताज्जुब नहीं और फिर यहाँ भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोहराया जायेगा और हो जाएगा एक महान सभ्यता का पटाक्षेप….
इतना सब होने के बाद भी हिन्दू आज भी उसी खुमारी में सोया हुआ है। हम आज भी इस तरह सोचते हैं और आपस में लड़ते रहते हैं जैसे कि आज भी पूरे संसार पर हमारा राज है पर सच्चाई यह है कि हम विनाश के कगार पर खड़े हैं। और ऐसे ही हम बीसियों देशों से अपना अस्तित्व खो चुके हैं, आज हिंदुओं का अपना एक देश भी नहीं बचा है। भारतवर्ष में भी कम से कम नौ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं, सिर्फ 20 राज्य बचे हैं जहां कहने के लिये हिन्दू बहुसंख्यक है परन्तु वहां भी उनकी स्थिति दूसरे दर्जे के नागरिकों से ज्यादा नहीं है। अफसोस तो यही है कि इस के बावजूद भी कुछ लोग आज भी नासमझ बने हुये हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। अगर हम कुछ कर नहीं सकते तो कम से कम स्थिति की गम्भीरता को तो स्वीकार कर सकते हैं और यह सोचने की बजाय कि सरकार कुछ करेगी, अब हमें ही कुछ सोचना और अपने को तैयार करना होगा अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिये, अपनी जान बचाये रखने का संघर्ष, “फाइट फॉर सर्वाइवल”। “शठे शाठ्यम समाचरेत” अर्थात दुष्टों के साथ दुष्टता ही विदुर नीति में कहा गया है, यानि जो जैसी भाषा में बोले उसे वैसी भाषा में जवाब। हमें सिक्ख समुदाय और इस सन्दर्भ में मुसलमानों से भी सीख लेने और अपनी इस आत्मघाती निद्रा से शीघ्रातिशीघ्र चेतन होने की आवश्यकता है।
हमारा हजार सालों का इतिहास तो यही इशारा कर रहा है की हिंदुओं के पतन और दुर्गति का सिर्फ़ एक और एक ही कारण है कि हिन्दू खुद हिन्दू का विरोधी है। सन् 1946-47 का वह भयंकर हिन्दू संहार, इतिहास का अत्यन्त भयावह और कालिमायुक्त पृष्ठ, अभी भी इसकी कोई गारंटी नहीं कि यह सब दुबारा नहीं दोहराया जायेगा क्योंकि गांधीबाबा जनसंख्या विस्फोट द्वारा जिहाद के सारे कारण बना कर गये हैं। अगर हिन्दू संगठित और कट्टर नहीं बन पाये तो कश्मीरियों वाले अंजाम के लिये तैयार रहें। कश्मीरियों को तो सर छुपाने की जगह भी मिल गयी थी पर अब भारतवासी कहां भागेंगे। अफसोस तो यही है कि हिन्दू उग्रवादी नहीं होते वर्ना किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं होती कि कश्मीरी पंडितों पर कोई उंगली भी उठा सकता। हिन्दुओं की बदहाली के लिए नेहरू-गांधी के अलावा स्वयं हिन्दू और सबसे ज्यादा केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकारें भी जिम्मेदार रहीं हैं।….
यह स्वच्छंदता, यह आजादी और यह बोलने की स्वतंत्रता और धर्म को मानने या न मानने की मनमानी तभी तक है जबतक हम हिन्दू धर्म में हैं या जबतक हिन्दूधर्म है अन्यथा तो फिर जैसा ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान आदि में हुआ या हो रहा है वही होगा। हिन्दू अपनी दुर्गति के लिये स्वयं जिम्मेदार हैं। मैकाले की पढ़ाई पढ़कर सब हिन्दुत्व से बहुत दूर होकर जेन्टिलमेन बन गये हैं। वेद, पुराण,गीता, भागवत उनके लिए बेकार की चीजें होकर रह गयी हैं। अगर हम अब भी अपनी डूबती संस्कृति को नहीं संजो पाये तो वह दिन दूर नहीं जब फिर कोई बाबर या औरंगजेब कश्मीरी पंडितों की तरह हिन्दू माताओं, बहनों, बहुओं और बेटियों को घरों से बाहर खींच कर सड़कों पर बेइज्जत करेगा, पुरुषों और बच्चों का कत्लेआम होगा जबतक सब धर्म परिवर्तन नहीं कर लेते या फिर वेटिकन के दूत आपके घर के पिछले दरवाजों से घुसकर बहला-फुसलाकर या डरा धमकाकर, लालच देकर आपके गले में एक क्रास डाल देंगे और सो-काल्ड फादर वही करेंगे जो आजकल जगह-जगह से खबरें आ रहीं हैं। अपनी संस्कृति, धर्म, ऐतिहासिक धरोहरों और महापुरुषों पर गर्व करें। हो सकता है कि आधुनिक परिवेश में इनसे तुरन्त आपको लाभ न हो परन्तु आपको एकजुट करके रखने में बहुत सहायक होगा और आपकी धार्मिक या जीवनशैली की स्वतंत्रता को जरूर अक्षुण्ण रखेगा। यह हिन्दुओं का सौभाग्य है कि हजार सालों बाद केन्द्र में एक ऐसी सरकार है जो हिन्दुओं को प्रताड़ित करने में तत्पर नहीं दिखती है…
मुस्लिमों और ईसाइयों में आपस में कितनी भी भिन्नता हो पर जब बात धर्म की आती है तो मधुमक्खियों की तरह एक साथ चिपट जाते हैं जबकि हिन्दू जब उनके धर्म पर आता है तो एक दूसरे का मुंह देखने लग जाते हैं और दूसरे की खामियाँ निकालने में लग जाएंगे। इस्लामद्रोही भले ही मुस्लिम ही क्यों न हो मुसलमान लोग उसका भी वध कर देते हैं और आज वैसे ही लोग फल-फूल रहे हैं। लोग जानते हैं कि अल्ला हू अकबर के साथ नहीं झुकेंगे तो पीछे एक तलवार खिंची हुई होगी, जबकि हिन्दू धर्म एक आवश्यकता से ज्यादा लचीला धर्म है। और लोगों को विश्वास है कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ेगा भले वे चाहे जो करें और यही हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। धर्म के दुश्मनों पर कठोर प्रहार होना ही चाहिए, बाकी धर्मों में यही होता है तभी सब संगठित रहते हैं और यही फार्मूला देश के दुश्मनों पर भी लागू होना चाहिए तभी पाकिस्तान जिन्दाबाद और भारत तेरे टुकड़े गैंग पर लगाम भी लग पायेगी।
इस्लाम की ताकत ही उनकी तलवार है जिसके जोर पर 56 से ज्यादा भूखंडों में उनका शरिया चलता है। शून्य से बढ़कर 57 इस्लामिक देश और हिन्दू जो कि अपने को क्षमाशील, दयावान और सहिष्णु बनते आये हैं, आज अपने आखिरी देश से भी विलुप्तता के कगार पर आ गये हैं। तुलसी दासजी ने ठीक ही कहा था,
“भय बिनु होय न प्रीत गोसाईं “।
हिन्दू, हिन्दुत्व और राष्ट्र द्रोहियों के दिलों में भय आवश्यक है और यही कारण है कि जहां उनके 57 से ज्यादा मुल्क हैं वहीं हिन्दुओं का एक देश भी नहीं बचा। जितना आपसी वैमनस्य हिन्दुओं में है उतना तो विश्व के किसी भी समुदाय, जाति या धर्मावलंबियों में नहीं है और यही कारण है सतत हिन्दू विनाश का। आज भी कुछ लोगों का हिन्दुत्व जोधाबाई, मानसिंह, और जयचंदो वाला है जो महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान जैसे देश भक्तों को अपने म्लेच्छ आकाओं के हाथों पराजित कराने का उपक्रम करते रहते हैं या अपनी बहन-बेटियों को उनके आगे परोसने में गर्व महसूस करते मिलेंगे।
1200 सालों का इतिहास उठाकर देख लें, अधर्मियों पर दया करना ही भारत देश और हिंदुत्व के विनाश का मूल कारण रहा है। पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद घोरी को 17 बार परास्त किया पर अपनी क्षमाशीलता के कारण उसे हर बार माफ कर जाने दिया। पर 18वीं बार जयचंद की गद्दारी के चलते भारत के इतिहास की धारा ही बदल गयी और भारत में म्लेछों का स्थायी तौर पर आगमन हो गया तथा हिन्दुओं का दमन और विनाश शुरू हो गया….बात चिन्ता की और सोचने की जरूर है। हिन्दू राष्ट्र ही भारत की पहचान है.. बाकी तो सिर्फ इसे क्रिस्तान, खालिस्तान या पाकिस्तान में बदलना चाहते हैं। सीधे बने रहने से हिंदुओं और हिन्दू धर्म को उपेक्षा ही मिलेगी जैसा की अभी तक होता आ रहा है। अतः उठो और तुमको भी कट्टर और संगठित होना पड़ेगा। अलग-अलग और बिखरे रहेंगे तो कोई घास तक नहीं डालेगा, “सीधे का मुंह कुत्ता चाटे” वाली कहावत तो जरूर सुनी होगी। मंगल और शनि जैसे खतरनाक ग्रहों की शान्ति के लिये लोग पूजा करते हैं पर बृहस्पति जैसे अच्छे ग्रहों पर ध्यान तक नहीं देना जरूरी समझते। अपना यह सेक्युलर, अहिंसावादी, दया, ममता वाला प्रोफाइल बदलना ही पड़ेगा। मुजाहिदीनों की तरह का क्रूर और भयानक रूप धारण करते ही सारे लोग अपने आप लाइन पर आ जायेंगे….
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