Tuesday December 10, 2024
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सर्वे कर्मवशा वयम्॥ (भावार्थ: सब कर्म के आधीन है।)

किसी भी कार्य या उद्यम में सफलता के लिए कड़ी मेहनत और समय देना पड़ता है। हमारे शास्त्रों में कर्म का दर्जा सबसे ऊपर माना गया है – कर्म को पूजा माना जाता है।

परंतु, आजकल कार्य-जीवन संतुलन (वर्क/लाइफ बैलेंस) और चार या पांच कार्यदिवसों वाले सप्ताह के विचार लोकप्रिय हो रहे हैं। हालांकि, ये अवधारणाएं बर्नआउट (Burnout) रोकने और जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) सुधारने के उद्देश्य से लाई गई हैं, लेकिन अक्सर यह सच्चे संतोष का सार—अपने काम में उद्देश्य खोजना, को पकड़ने में विफल रहती हैं । दुनियाभर के सफल लोगों ने यह दिखाया है कि जब आप अपने काम से प्यार करते हैं, तो संतुलन खुद ही हासिल हो जाता है, न कि इसे लक्ष्य के रूप में हासिल करने की कोशिश की जाती है।

एलन मस्क, स्पेस एक्स (Space X) और (Tesla) के CEO , जो अपने 80-100 घंटे के कार्यसप्ताह के लिए जाने जाते हैं, यह काम इसलिए करते हैं क्योंकि वे अपने मिशन को लेकर जुनूनी हैं। उनका मानना है कि महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये यह ज़रूरी है। इसी तरह, गैरी वायनरचुक, जो “हसल कल्चर” के समर्थक हैं, कहते हैं कि सार्थक काम पेशेवर और व्यक्तिगत संतोष के बीच की सीमाओं को धुंधला कर देता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण लें, जो 16-18 घंटे काम करते हैं, यह दिखाते हुए कि राष्ट्र सेवा के प्रति उनका समर्पण उनके काम को उनके जीवन का हिस्सा बनाता है।

भारत में, नारायण मूर्ति, इंफोसिस के सह-संस्थापक अपने रिटायरमेंट तक रोज़ 14-15 घंटे काम करते थे, रतन टाटा, दूरदर्शी उद्योगपति, ने अपने करियर की शुरुआत में गहन समर्पण और कड़ी मेहनत के जरिए सफलता प्राप्त की। इन दोनों नेताओं ने समय और ऊर्जा को अपने काम में लगाया, जहां समस्याओं को सुलझाने और नवाचार में खुशी पाई, बजाय इसके कि वे तय समय पर काम छोड़ दें।

कार्य-जीवन संतुलन का मिथक अक्सर एक गहरी सच्चाई को नजरअंदाज करता है: जब काम आपकी मूलभूत मान्यताओं और महत्वाकांक्षाओं से मेल खाता है, तो यह जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाता है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इसका बेहतरीन उदाहरण पेश किया, जिन्होंने विज्ञान (ISRO, DRDO) और शासन में लगन से काम किया और समाज में अपने योगदान में खुशी पाई। ऐसे कई और उदाहरण हैं जैसे बायोकॉन (Biocon) की अध्यक्ष किरण मजूमदार-शा, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के संस्थापक धीरूभाई अंबानी जिन्होंने कड़ी मेहनत के दम पर अत्यंत सफल और विश्वस्तरीय कंपनियों की स्थापना की।

कम कार्यदिवस, 9-5 जॉब की वकालत करना सफलता पाने का अति सरलीकरण (oversimplification) है। अपने काम से प्रेरित नेताओं ने दिखाया है कि लचीलापन (flexibility), प्रयास (effort), और निरंतर फोकस (focus), समय सीमाओं से परे हैं। कार्यदिवस को सीमित करने के बजाय, ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि काम को जुनून से कैसे जोड़ा जाए।

इन नेताओं ने दिखाया है कि सच्चा संतुलन काम और जीवन को अलग करने में नहीं, बल्कि इसे इस तरह से एकीकृत करने में है जो विकास और संतोष दोनों को बढ़ावा देता है। जब आप अपने काम से प्यार करते हैं, तो यह बोझ नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत बनता है, और वहीं सफलता और खुशी का मेल होता है।

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